भारत ही नहीं विश्व के कुछ और भी देश वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। प्रदूषण की मार से बच्चे और बुजुर्ग अपना जीवन भी खो रहे हैं। एक ताजा मामले में ये सामने आया है कि अफगानिस्तान जैसे शहर में जहां बमबारी से उतने लोग नहीं मारे गए जितनों की मौत प्रदूषण की वजह से हो चुकी है। एक रिसर्च के मुताबिक अफगानिस्तान में युद्ध में 3483 लोग मारे गए थे मगर साल 2017 में अब तक यहां पर प्रदूषण से 26000 लोगों की मौत हो चुकी है।
छोटे बच्चों की हो रही मौत
अफगानिस्तान में युद्ध से बचने के लिए यहां के रहने वाले हजारों लोग अपना घर बार छोड़कर काबूल या कहीं और शिफ्ट हो चुके हैं मगर उसके बाद भी उनके जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। जो लोग युद्ध का शिकार नहीं हुए अब उनका जीवन प्रदूषण की मार से खत्म हो जा रहा है। दरअसल इन दिनों ठंड का मौसम शुरू हो गया है, लोगों के पास अपने को गर्म रखने के लिए कोई साधन नहीं है। वो यहां पर जमा की गई पन्नियों आदि को जला रहे हैं और उससे अपने को गर्म रख रहे हैं। ये जलाई जाने वाली पन्नियां भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण हैं।
युद्ध में मारे गए 3483 और प्रदूषण से 26000 से अधिक मौतें
अफगानिस्तान में प्रदूषण से अब तक कितने लोगों की मौत हो चुकी है, इसका कोई अधिकारिक रिकार्ड नहीं है। मगर एक शोध संस्थान की ओर से इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की गई है। शोध करने वाली संस्था स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर की ओर से बताया गया कि साल 2017 में 26000 से अधिक मौतें हो चुकी है। जबकि संयुक्त राष्ट्र की ओर से बताया गया था कि अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान 3483 नागरिक मारे गए थे।
दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक
काबुल की आबादी 6 मिलियन है। मगर इन दिनों प्रदूषण के मामले में इसकी स्थिति देश की राजधानी दिल्ली और चीन के बीजिंग शहर से भी बदतर है। ये शहर प्रदूषण की रैकिंग के मामले में सबसे ऊपर है। युद्ध के दौरान इस शहर का बुनियादी ढांचा पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है, इस वजह से यहां के लोग दूसरी जगहों पर शरण ले रहे हैं। शहर का पुराना ढांचा खत्म हो जाने के बाद अब यहां के लोगों के पास अपने लिए खाना बनाने के लिए प्राकृतिक साधन भी मौजूद नहीं है। जिस वजह से यहां के लोगों को प्लास्टिक जैसी चीजें जलाकर अपने घर का खाना बनाना पड़ रहा है। इस वजह से इन दिनों अफगानिस्तान में प्रदूषण का लेवल खतरनाक लेवल से भी अधिक है।
जलाया जा रहा कोयला और प्लास्टिक कचरा
यहां के रहने वाले गरीब तबके के पास अपने लिए खाना बनाने और अन्य चीजों के लिए साधन ही उपलब्ध नहीं है। इस वजह से ये लोग कोयला, कचरा, प्लास्टिक और रबड़ आदि जला रहे हैं। इसके अलावा कई ईंट भट्टों और अन्य जगहों पर भी इसी तरह की चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां कई जगहों पर इमारतों में सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है, इससे भी धूल उड़ती रहती है। इस इलाके में रहने वाले अपने घरों से ही पड़े पैमाने पर हवा में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर सर्वे के अनुसार साल 2017 में 19,400 मौतें घरेलू प्रदूषण के कारण हुई थी। सर्वे के अनुसार इस तरह से प्रदूषण की वजह से लोगों की उम्र दो साल कम हो रही है। इससे पैदा होने वाले बच्चों पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा है।
अपने को गर्म रखने और खाना बनाने के लिए जलाया जा रहा कचरा
युद्ध के बाद यहां पहुंचे लोगों के लिए कैंप बनाए गए हैं। इन कैंपों में 100 से अधिक परिवार रह रहे हैं मगर इन परिवारों के लिए इन शिविरों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। पर्याप्त व्यवस्था न होने की वजह से ही इन लोगों के बच्चे पुराने कपड़े, कागज और अन्य चीजें जलाने के लिए खोजते हैं, इसके अलावा जो भी चीजें मिल रही हैं वो उसको जला रहे हैं। इन परिवारों के पास हीटिंग के लिए न तो पर्याप्त साधन हैं ना ही इतने पैसे कि वो इन चीजों को खरीद सकें। इस वजह से वो इन सभी चीजों को बहुतायत में जला रहे हैं जिससे वायु प्रदूषण बड़े पैमाने पर फैल रहा है।
युद्ध में खो गया बुनियादी ढांचा
अब से तीन या चार दशक पहले तक काबुल की हवा इतनी अधिक खराब नहीं थी, ये पूरी तरह से सांस लेने लायक थी। राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के उप निदेशक एजातुल्लाह का कहना है कि युद्ध के बाद हम अपने शहर के बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से खो चुके हैं। अब यहां पर सार्वजनिक परिवहन के साधनों के साथ-साथ अन्य चीजों की भी समस्या हो गई है जिसके कारण हवा इतनी अधिक खराब हो चुकी है। काबुल के पर्यावरण विभाग के निदेशक मोहम्मद काज़िम हुमायूँ ने कहा कि प्रदूषण से लड़ना आतंकवाद से लड़ने जैसा ही है। उन्होंने बताया कि पुराने वाहनों से हो रहे प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए अलग से कदम उठाया जा रहा है।
सांस की बीमारी से पीड़ित हो रहे बच्चे
काबुल के अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी है, वैसे वे इस बारे में कोई सटीक आंकड़ा नहीं बता पाए मगर संख्या में बढ़ोतरी हो रही है इससे वो इंकार नहीं कर रहे हैं। अस्पताल के अधिकारियों के अनुसार, सर्दियों में बच्चे सांस की बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं। सरकार ने पर्यावरण जागरूकता अभियान शुरू किया है।
शहरी समस्याएं बन रही चुनौतियों का कारण
राजधानी काबूल के पास भी अनियोजित तरीके से विकास हो रहा है। यहां पेड़ पौधे लगाने की दिशा में कोई काम नहीं किया जा रहा है मगर कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। इस शहर के पास वायु प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं मगर उनसे निपटने के लिए सख्ती से कोई काम नहीं किया जा रहा है। इसी का नतीजा ये है कि यहां के हालात अब जाकर इतने खराब हो चुके हैं। इसी अनियोजित विकास का नतीजा ये है कि अब यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की चपेट में आने के बाद अपना जीवन खो रहा है, इनकी संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है जबकि यहां इतने बड़े पैमाने पर लोग युद्ध के दौरान नहीं मारे गए थे।